टोड मास्साब की पढ़ाई अंग्रेज़ी ज़्यादातर बच्चों की समझ में नहीं आती थी. क्लास के अधिकतर बच्चे नॉर्मल स्कूल या बम्बाघेर नम्बर दो के सरकारी प्राइमरी स्कूल से पांचवीं पास थे. इन स्कूलों में अंग्रेज़ी नहीं सिखाई जाती थी. लफ़त्तू, मैं और क़रीब बीसेक बच्चे मान्टेसरी स्कूल या शिशु मन्दिर से आए थे जहां पहली ही कक्षा से इसे सिखाए जाने पर ज़ोर था.
टोड मास्साब की कक्षा में अंग्रेज़ी वाली कापी में ए बी सी डी लिखाने से शुरुआत हुई. मास्साब का लड़का गोलू भी हमारे साथ था और उसकी पढ़ाई बम्बाघेर नम्बर दो में हुई थी. जाहिर है गोलू को भी ए बी सी डी नहीं आती थी. और यह सर्वज्ञात तथ्य टोड मास्साब के ग़ुस्से और झेंप का बाइस बना करता था.
लफ़त्तू को गोलू से संभवतः इसलिए सहानुभूति थी कि गोलू हकलाता था. पहली बार कक्षा में पिता द्वारा सबके सामने पीटे जाने और जलील किए जाने के बाद गोलू इन्टरवल में रो रहा था. अपने पापा की जेब पर सफलतापूर्वक हाथ साफ़ करके आया लफ़त्तू मुझे बौने का बमपकौड़ा खिलाने ले जा रहा था जब उसकी निगाह गोलू पर पड़ी.
"इंग्लिछ मात्तर का बेता हो के लोता है बेते!" कह कर उसने गोलू को मोहब्बतभरी तोतली डांट पिलाते हुए बमपकौड़ा अभियान का हिस्सा बना लिया. " मेले पापा तो मुदे लोज धूनते हैं, मैं कोई लोता हूं कबी! गब्बल छे छीक बेता गब्बल छे: जो दल ग्या वो मल ग्या बेते." किंचित सहमा हुआ, लार टपकाता गोलू कभी लफ़त्तू के कॉन्फ़ीडेन्स को देखता कभी हरे पत्ते में सजे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ, स्वादिष्टतम बम-पकौड़े को. कभी उसकी निगाह स्कूल की तरफ़ उठ जाती.
"ततनी दालियो हली वाली औल लाल मिल्चा" कहकर उसने अपना पत्तल बौने के सामने किया. "अभी लेओ बाबूजी" बौना सदा की तरह तत्परता से बोला. यह लफ़त्तू की ख़ास अदा थी जब वह मिर्चा खा पाने की अपनी कैपेसिटी से सामने वाले को आतंकित किया करता. उसकी तनिक पिचकी नाक से एक अजस्र धारा बह रही होती थी पर वह बौने से कहता: "औल दो!"
गोलू के हावभाव बता रहे थे कि वह पहली बार इस प्रकार के कार्यक्रम में हिस्सेदरी कर रह था. पिता की झाड़ और संटी की मार भूलकर वह ज्यों त्यों पकौड़ा निबटाने में लगा था. मैं और गोलू नए खेल के पोस्टर देखने में मशगूल थे.
"नया खेल लगा है बाबूजी! आज ही शुरू हुआ है." अपनी कलाई पर बंधी कोयले और धुंए जैसे डायल वाली, सुतली से कलाई में लपेटी घड़ी पर निगाह मारते हुए बौने ने आगामी बिज़नेस की प्रस्तावना बांधना चालू किया, "हैलन का डान्स हैगा इस में. अभी चल्लिया होगा. आपके इस्कूल में तो अभी टैम हैगा. देखोगे बाबूजी?" इस आश्वस्तिपूर्ण वक्तव्य में इसरार कम था नए ग्राहक को फंसाने की चालबाज़ी ज़्यादा. "नए वाले बाबूजी से क्या पैसा लेना."
लफ़त्तू ने जेब से दो का नोट निकाला और जब तक वह गोलू को पिक्चर देखने का तरीक़ा बताता, मेरी निगाह अपने घर की छत पर गई. मां कपड़े सुखाने डाल चुकने के बाद बाहर देख रही थी. मुझ डरपोक को लगा कि वह सीधा हमें ही देख रही है. मैं बिना बताए जल्दी-जल्दी क्लास की दिशा में बदहवास भाग चला. इस हड़बड़ी में कक्षा के दरवाज़े पर मैं सीधा अपने बड़े भाई से टकरा गया जो मुझे इन्टरवल के बाद घर बुलाने आया था. मेरे ध्यान में नहीं रहा था कि उस दिन हमें गर्जिया मंदिर लाना था. सामने से सिलाई वाले सिरीवास्तव मास्साब आते दिखे तो भाई ने उन्हें एक कागज़ दिखाया. उनके मुंडी हिलाने पर हम घर की दिशा में चल पड़े.
लफ़त्तू और गोलू के साथ क्या बीती होगी - यह मेरी कल्पना की उड़ान के लिए बहुत बड़ी थीम थी.
हम शाम को घर लौटे. थोड़ी ही देर बाद दरवाज़े पर लफ़त्तू के पापा मौजूद थे. मैं बेतरह डर गया और थरथर कांपने लगा. लेकिन वे मेरे लिए जोकर के मुंह वाला मीठी सौंफ़ का डिब्बा लाए थे. डब्बा लेकर मैं छत पर बंटू के साथ क्रिकेट खेलने चला गया. बंटू नई गेंद लाया था और हमारा स्वयंसेवक अम्पायर महान लफ़त्तू हरिया हकले की छत फांदता आ रहा था.
बहुत ही अनौपचारिक तरीके "क्या कैलये मेले पापा" पूछते हुए उसने बंटू से गेंद ली और "खेल इश्टाट" का ऑर्डर दिया. मैं बैटिंग कर रहा था पर मेरा मन बेहद व्याकुल था. जाहिर है लफ़त्तू जानता था कि उसके पापा मेरे घर में बैठे पिताजी से बात कर रहे थे. स्कूल में गोलू के अन्जाम की खौ़फ़नाक कल्पनाओं में मैं रामनगर-गर्जिया-रामनगर यात्रा में चिन्ताग्रस्त रहा था.
मैं पहली बॉल पर आउट होता रहा और बंटू ख़ुशी ख़ुशी मेरी गेंदों की धुनाई करता रहा. देर से शुरू हुआ खेल जल्दी निबट गया. घर जाने से पहले लफ़त्तू ने कमीज़ ऊपर की और पीठ पर पड़े नीले निशानों की मारफ़त सूचना दी कि उसकी और गोलू की टोड मास्साब ने संटी मार-मार कर खाल उधेड़ डाली थी. उसके बाद लफ़त्तू के पापा को स्कूल बुलाया गया. और यह भी कि उसके पापा ने उस से कुछ नहीं कहा बल्कि उसे भी जोकर के मुंह वाला मीठी सौंफ़ का डिब्बा दिया.
अगले दिन और उसके बाद के कई दिन तक न टोड मास्साब स्कूल आए न गोलू. कोई कहता था लफ़त्तू के पापा ने टोड मास्साब को जेल भिजवा दिया और गोलू को मरेलिया हो गया. हुआ जो भी हो, लफ़त्तू की और मेरी अपनी दिनचर्या में एक परिवर्तन यह आया कि हमें सुबह छः बजे लफ़त्तू के पापा ने अंग्रेज़ी पढ़ानी चालू कर दी. यह मेरे घर उनके आने के अगले दिन से शुरू हुआ.
मेरी ही तरह लफ़त्तू के भी बहुत सारे भाई-बहन थे और हमारी पढ़ाई के समय वे कभी-कभार परदों के पीछे नज़र आ जाया करते थे. इस पढ़ाई के दौरान उसकी बड़ी बहन हमें दूध-बिस्कुट भी परोसा करती थी. असल बात यह थी कि मैं एक ही दिन में ताड़ गया था कि लफ़त्तू के पापा की ख़ुद की अंग्रेज़ी कोई बहुत अच्छी नहीं थी. वे पिथौरागढ़ी कुमाऊंनी मिश्रित हिन्दी में हमें इंग्लिस पढ़ाते थे. 'वी' को 'भी' कहते थे, जो मुझे बहुत अटपटा लगता. लेकिन लफ़त्तू की दोस्ती के कारण मैं इस कार्यक्रम में बेमन से हिस्सा लेता और हां-हूं कहा करता.
बस अड्डे से माचिस की डिब्बियों के लेबल खोजने का प्रातःकालीन आयोजन बाधित हो गया था और कभी-कभार घुच्ची खेलने का भी. क़रीब एक हफ़्ता हुआ होगा जब एक रोज़ लफ़त्तू पर जैसे शैतान सवार हो गया. दूध-बिस्कुट आते ही लफ़त्तू ने कापी बन्द की, एक सांस में दूध पिया, जेब में चार बिस्कुट अड़ाए और कापी को ज़मीन पर पटक कर, बस अड्डे और उस से भी आगे भाग जाने से पहले अपने पापा से बोला: "वल्ब को तो भल्ब कहते हो आप! क्या खाक इंग्लिछ पलाओगे पापा?"
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12 comments:
बहुत खूब, अशोकदा आपका जवाब नहीं।
ये तो पोस्ट का मिनिएचर हो गया जी। अभी मज़ा आना शुरु ही हुआ था कि आपने खतम कर दिया। अब एक महीना लगाओगे अगली पोस्ट डालने में।
सई कई बाबूजी!
'भेरी गुड' हुआ ये तो!
सुल्तानपुर में एक शाम राणा प्रताप डिग्री कालेज के दो पक्ख़
ड़ मास्टरों को बतियाते ओवरहियर किया था।
एक ने नाक से पूछा- अमे विसेसर इ बताओं कोई इश्टूडेंट पूछत रहा कि राष्टृगीत अउ राष्ट्रगान में का अंतर आय?
दूसरे ने कहा-ल्यौ तुमहू लफूझन्नै रहि गयौ। अरे जानौ लौंडा गावै तो राष्टगान औ लौंडिया गावै तौ राष्टगीत। औ क्का।
मुझे लज्जा की रामप्यारी उर्फ रेखा की याद आई. तब लफूझन्ना नहीं देखा था।
बहुत सही!!!
बहुत ज़बरदस्त चल रहा है लपूझन्ना. बनाए रखें.
क्या 'बम्बाघेर ' गधैय्या गोल ' का पर्यायवाची है?
Bahut sahi likha hai Da, maja aa reha tha, Toad maasab se yaad aaya ki humare bhi ek Toad Masaab thai,
बाँध लिया आपने...!
dimag ka 'bhalb' jala diya apne. vah ji kya adda jam raha hai yahan par!
भल्ब अपने भी जल रहे हैं..अपना बापू उलटा है, मेरे उच्चारण खराब रहे हैं और वो कहता चिमटा लाल कर इसकी जीभ पकड़ो...जिनहोंने जीवंत जिंदगी जी है, उन्हें खूम मजा आ रहा है और जो मम्मा-डैडी की गोद में ही जवानी तलक हगते-मूतते रहे, वे पढ़कर हैरत में होंगे
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