
हिमालय
टॉकीज से लगे खेल मैदान में हम किराए की साइकिलें चलाया करते थे. मैदान खासा बड़ा
था और शाम चार बजे से उसमें छोटे बड़े बच्चों के बारह पन्द्रह समूह अलग अलग घेरों
में क्रिकेट खेला करते थे. मैदान का एक खास कोना था जो बच्चों के लिए निषिद्ध था.
इस कोने में रामनगर फुटबॉल क्लब के खिलाड़ी प्रैक्टिस किया करते थे. फुटबॉल के लिए
रामनगर जितने छोटे कस्बे में पाया जाने वाला जुनून बेमिसाल था.
साल
में दो दफे बाकायदे राष्ट्रीय स्तर का टूर्नामेन्ट हुआ करता था. हमारे घर की छत से
मैदान साफ़ देखा जा सकता था. मैदान के चारों ओर की दीवारों को खेलप्रेमी मैच के
काफी पहले घेर लिया करते थे. चूंकि इन खेलप्रमियों में ज़्यादातर मुसलमान होते थे, हमें घरवालों के प्रेशर के कारण छत से ही मैच देखना पड़ता था.
रामनगर
की टीम अच्छा खेलती थी. उसके सितारे साल के बाकी दिनों सब्ज़ी बेचते या पुराने
कनस्तरों में ढक्कन लगाने जैसे काम करते दिखाई देते थे लेकिन टूर्नामेन्ट के समय
समूचा शहर उन्हें पलकों पर सजाए रखता था. रामलीला समिति इन की खूबसूरत पोशाकें ‘स्पॉन्सर’ किया करती थी. कत्थई और पीले रंग की
पट्टियों से बनी पोशाकें पहने फुटबाल शूज़ और स्टाकिंग्स में सुसज्जित ये खिलाड़ी
हफ्ते दस दिन तक नगर की शान हुआ करते थे. सब्जी मंडी में कुलीगीरी करने वाला
शिब्बन गोलकीपर था और क्या शानदार गोलकीपर था. उसकी किक आमतौर पर विपक्षी टीम की
डी तक पहुंचा करती थी और ऐसा होने पर सारा मैदान पगला जाता था : ‘शिब्बन … शिब्बन … शिब्बन …’
की आवाजों से आसमान गूंज जाया करता था.
टूर्नामेन्ट
में दिल्ली, नैनीताल, लखनऊ और
बरेली जैसे शहरों की टीमें आती थीं. लेकिन चैम्पियन टीम टांडे की हुआ करती थी.
माइक पर रनिंग कमेन्ट्री चला करती थी और इस चैम्पियन टीम का स्वागत करते हुए
गोल्टा मास्साब की जबान पर जैसे सरस्वती बैठ जाती थी. उनके मुंह से उर्दू के इतने
मीठे मीठे अलफाज निकला करते थे … उफ़.
इस
टीम के सारे सदस्यों की अफगानी दाढ़ियां होती थीं और वे सब एक ही रंग का पठान सूट
पहनकर खेलते थे. हाफपैन्टें वगैरह उनके पास होती ही नहीं थीं. पाजामों के पांयचे
घुटने तलक उठाए नंगे पैर खेलने वाले इन लम्बे तड़ंगे जांबाज खिलाड़ियों को कोई भी
नहीं हरा पाता था. मेरी अपनी याददाश्त में मैंने ऐसी चैम्पियन टीम नहीं देखी. एक
साल टूर्नामेन्ट के दो माह पहले से यह अफवाह उड़ी थी कि टांडे वालों को हराने के
लिए दिल्ली से इन्डियन एयरलाइंस की टीम बुलाई जाने वाली है.और इन्डियन एयरलाइंस की
टीम आई भी. और यही दो टीमें फाइनल में पहुँची भी.
गोल्टा
मास्साब की आवाज फाइनल मैच से पहले बुरी तरह कांप रही थी. मैंने इतनी भीड़ पहले कभी
नहीं देखी थी. अफ़वाह चल रही थी कि रामनगर के इतिहास में पहली बार खासतौर पर मैच
देखने को मुरादाबाद ठाकुरद्वारा और बरेली से लोग आए हैं.
दिल्ली
की टीम ने पहले हाफ में टांडा फिटबाल किलब के छक्के छुड़ा दिए थे. दर्शक पहली बार
अपने शहर से हर बरस चैम्पियन टीम की बेबसी देख रहे थे और जब हाफ़टाइम से जरा पहले
इन्डियन एयरलाइंस ने पहला गोल ठोका तो सारा मैदान सन्नाटे में डूब गया.
हाफटाइम
के समय इन्डियन एयरलाइंस की टीम का कोच हाथ हिला हिला कर खिलाड़ियों को निर्देश दे
रहा था जबकि टांडा फिटबाल किलब के खिलाड़ी यहां वह पस्त पड़े हुए थे. इस मैच के लिए
मुझे विशेष इजाजत दी गई थी कि मैं भाई के साथ मैदान पर जा सकता था. मैंने अपने
आसपास निगाह डाली और पाया कि आमतौर पर हाफटाइम में शोरशराबा करने वाले एक खास कोने
में बैठे खड़े लोगों को जैसे सांप सूंघ गया था. हर किसी की निगाह काले खान पर थी.
टांडा फिटबाल किलब का कप्तान था काले खान. पहलवान जैसी कदकाठी का मालिक काले खान
मेरे जीवन का पहला सुपरस्टार था और जब मैंने मैदान के बीच पस्त बैठे इस विचारमग्न
महानायक को घास का तिनका चबाते देखा तो मेरा दिल टूट गया.
तो
क्या दिल्ली के ‘लौंडे’ आज
काले खान की टीम को धो देंगे?
हाफ़टाइम
के बाद इन्डियन एयरलाइंस ने खेल की रफ्तार कम कर दी और वे पासिंग में समय काटने की
नीति अपना रहे थे. रामनगर में पहली बार इस तरह की निर्जीव फुटबॉल देख रहे दर्शकों
ने जैसे जैसे इन्डियन एयरलाइंस की हूटिंग करना शुरू किया टांडा के खिलाड़ी अपनी लय
में आने लगे. हिमालय टॉकीज वाले छोर से धीरे धीरे “काले
भाई … काले भाई …” का नारा उठना शुरू
हुआ. काले खान के कुरते पर कोयले से दस लिखा रहता था. इधर बस अड्डे वाले सिरे से “
… दस नम्बरी … दस नम्बरी …” की गूंज शुरू हुई.
काले
खान फिर उसी चैम्पियन में तब्दील हो गया. हाफ फील्ड से मारी हुई उसकी किक जब
इन्डियन एयरलाइंस के गोल में घुसी तो करीब सौ लड़के मैदान में घुस गए और उन्होंने
काले को कन्धों पर उठा लिया. खेल दुबारा शुरू हुआ तो इन्डियन एयरलाइंस ने आक्रमण
करना शुरू किया लेकिन स्कोर बराबर पर ही छूटा रहा. फिर काले अचानक बिजली की सी
फुर्ती से इन्डियन एयरलाइंस की डी में घुसा लेकिन उसे लंगड़ी मार कर गिरा दिया गया.
रेफरी ने पूरी पलान्टी देने के बजाय पलान्टी कार्नर दिया. इस तरह की किक मारने को
हमेशा एक प्रौढ़ सा दिखनेवाला बैक्की आता था. मैदान में लोग पगला गए थे. जो लोग
पिछले साल तक टांडा के खिलाड़ियों के लंगड़ा हो जाने की बद्दुआ दिए करते थे आज “काले भाई … काले भाई …” का
नारा बुलन्द किए हुए थे.
फिर
पलान्टी किक हुई फिर बहुत देर तक कुछ समझ में नहीं आया. जितनी अफरातफरी डी में मची
हुई थी उससे ज्यादा मैदान के बाहर दर्शकों पर थी. फिर अचानक लम्बी सीटी बजी … गोल की. मैं इन्डियन एयरलाइंस के खिलाड़ियों को हाथों में सिर थामे देख पा
रहा था. मैदान में बेशुमार लोग घुस गए थे. उस भीड़ और अफरातफरी को चीरती अगले ही
क्षण मैच खत्म होने की सीटी बजी.
देर
रात तक रामनगर के लोगों ने तमाम बैंड और ढोल बाजों के साथ टांडा फिटबाल किलब के
सारे खिलाड़ियों को कन्धों पर बिठाकर पूरे शहर के दो चक्कर काटे. रामनगर की टीम के
सबसे वाहियात बैक्की दलपत हलवाई उर्फ हग्गू सिपले ने अपनी दुकान एक ठेले में लाद
दी थी और वह रोता हुआ मिठाई बांट रहा था.
रामनगर
छोड़ने के कुछ साल बाद तक यह विश्वास करने में मुझे बहुत समय लगा कि विश्व का सबसे
बड़ा खिलाड़ी पेले टांडा छोड़कर ही ब्राजील नहीं पहुंचा था और काले का छोटा भाई नहीं
था.
बहरहाल
…
मेरे जीवन के प्रथम महानायक काले खान को रामनगर की टीम की शान माना
जाने वाला शिब्बन गोलकीपर अपने कन्धों पर उठाए रहा था शाम से देर रात तलक.