हफ़्ते के एक नियत दिन खताड़ी और उसके आसपास के मोहल्लों में भीख मांगने आने वाला एक बूढ़ा इतनी ज़्यादा दफ़े अपनी बेहद सड़ियल और भर्राई हुई आवाज़ में दैने बाले सिरी भगवान ... दैने बाले सिरी भगवान कहते हुए भीषण बोर किया करता था कि उसके सिरी भगवान का जाप सुनते ही लोग आटा-चावल इत्यादि के कटोरे लेकर अपने घरों से बाहर निकल आते ताकि बूढ़ा जल्दी दफ़ा हो और कानों की खाल न उतार पाए. बूढ़ा लोगों की दयालुता को स्वीकारने और किसी प्रकार का आशीर्वचन इत्यादि देने में विश्वास नहीं करता था. वह उसी असंपृक्त शैली में दैने बाले सिरी भगवान ... दैने बाले सिरी भगवान का जाप करता हुआ आगे बढ़ता जाता और लोग बूढ़े को जल्दी मर जाने का मूक आशीर्वचन देते हुए अपने किवाड़ बन्द कर लिया करते.
लफ़त्तू को यह बूढ़ा कुछ ज़्यादा ही पसन्द था और वह उसके खताड़ी पार करते ही भाग कर उसके पास जाता और उस से ठिठोली किया करता. "चल्लिया क्यून कबल कलने?" बूढ़ा एकाध बार तो उसकी बात सुनता पर उसके बाद उसका पारा चढ़ता और वह ज़मीन पर पड़े किसी ढेले से लफ़त्तू की मुण्डी को निशाना बनाने की असफल कोशिश करता. तब तक "बीयो ओ ओ ओ ...ई" कहता लफ़त्तू सेफ़्टी ज़ोन में प्रवेश कर चुकता.
उन जाड़ों में हिमालय में धरमेन्दर और बमफटाका मालासिन्ना की पिक्चर आंखें लगी. एक बार पुनः लालसिंह की अद्भुत सोशियल नैटवर्किंग के चलते हमें बाकायदे हॉल के भीतर स्क्रीन से आंखें सटाकर देखने का फोकट सुअवसर प्राप्त हुआ. गेटकीपर लालसिंह का जाननेवाला था और बड़ा लौंडियाबाज़. यह दूसरी सूचना हमें लालसिंह और केवल लालसिंह ने दी थी. हमें लालसिंह के साथ पिक्चर हॉल के गेट पर खड़ा देख बौना तनिक बौखलाया क्योंकि उसके बिज़नेस पर छोटा सा खतरा भिन्नौटायमान होने को था लेकिन जब लफ़त्तू ने बौने को जल्दी-जल्दी तीन पत्तल बनाने का ऑर्डर दिया तो बौने के आत्मविश्वास में ज़रा बढ़ोत्तरी हुई. अभी लीजिये बाबूजी कहकर वह अपने महानकलाकर्म में सन्नद्ध होने को ही था कि फ़ुच्ची कप्तान से भी ज़्यादा कलूटा एक भुसकैट टाइप का लौंडा लालसिंह के पास आया और उन्होंने आपस में बेहद भद्दी भद्दी गालियों का आदान प्रदान करते हुए अपनी अंतरंग मित्रता के ऐफ़ीडैविट को सार्वजनिक किया. कलूटे ने बौने की पीठ पर हल्की धौल सी जमाते हुए उसे भी एक भद्दी गाली दी और एक बेपरवाह नज़र हम दो पिद्दियों पर डालकर लालसिंह और हमसे अपने पीछे आने को कहा.
कलूटा हमें एक गुप्त द्वार से भीतर ले गया और थर्ड क्लास की सबसे आगे वाली पांत में हमें बिठाकर नड़ी हो गया. बिना टिकट पिक्चर देखने का आनन्द द्विगुणित हो गया जब हमें इन्टरवल में कोकोला और मूमफली का फोकट भोग लगाने को मिला. कुल मिलाकर पिक्चर अब तक बढ़िया चल रही थी. बमफटाका मालासिन्ना के आते ही लफ़त्तू मेरा हाथ कस कर थाम लेता और कुछ अंडबंड फुसफुसाने लगता. धरमेन्दर हमेशा की तरह उतना ही हॉकलेट था जैसा उसे होने का श्राप मिला हुआ लगता था. लेकिन जब जब कॉमेडी के दृश्य आते हम पर मस्ती छा जाती - पिक्चर में मैमूद भी था और मदनपुरी भी और आंएयांयांहांहांयांयां करते रहने से रोगग्रस्त काइंयां जीवन भी.
लुफ़्त का क्लाइमेक्स तब आया जब मैमूद और बमफटाका हाथगाड़ी में टेपरिकॉर्डर जैसा एक बचकाना सा वैज्ञानिक उपकरण ले कर भीख मांगने का नाटक करते हुए दे दाता के नाम तुझको अल्ला रक्खे गाने लगे. पहले स्टैन्ज़ा के ख़त्म हो चुकने पर लफ़त्तू की समझ में धुन बैठ गई और उसने अगले स्टैन्ज़े के चालू होते ही अपनी सीट से खड़े होकर बाकायदा कूल्हे मटकाने का कार्यक्रम शुरू कर दिया. पीछे की सीटों से "ओए बैठ जा बे लौंडे!" का उच्चार विभिन्न शैलियों-गालियों में होने लगा. लालसिंह ने डपटकर लफ़त्तू को सीट पर बिठाया पर अब पिक्चर में मन किसका लगना था. उसने मुझे चिकोटियां काटते हुए बेफ़ालतू हंसना जारी रखा. जैसे तैसे पिक्चर निबटी. लालसिंह ने हमसे जल्दी-जल्दी निकल लेने को कहा ताकि कोई परिचित हमें वहां देख घरों पर चुगली न कर बैठे. वह स्वयं कलूटे से एक दफ़ा मिलकर उसका आभार व्यक्त करने की मंशा रखता था.
हिमालय से बाहर निकलकर हम सीधे घर न जाकर बम्बाघेर की राह लग लिये. मेरे पूछने पर लफ़त्तू ने बस आंख भर मारी और दे दाता के नाम का जाप करना जारी रखा. दस मिनट में हम जगुवा पौंक के घर के बाहर थे. निर्धन जगुवा हमसे इस मायने में अमीर था कि उसके पास बैरिंगगाड़ी थी. ऐसी गाड़ी मेरे पास अल्मोड़े में थी पर रामनगर में हमारी मित्रमंडली में ऐसी गाड़ी सिर्फ़ जगुवा के पास थी. लफ़त्तू इस गाड़ी को जगुवा से कुछ दिन उधार मांगने की नीयत से आया था. जगुवा ने अहसान मानते हुए बहुत खुशी खुशी यह सत्कर्म किया.
अगले कई दिन हमारी शामें इस बैरिंगगाड़ी की सवारी करने में बीतती थी. घासमंडी के आगे अस्पताल की थोड़ी सी चढ़ाई थी. हम लकड़ी के फट्टों और ट्रकों के बैरिंगों से बनी इस गाड़ी को साइड में दबाकर अस्पताल तक ले जाते और वहां से उसकी सवारी करते तेज़फ़्तार से सीधा घासमंडी के मुहाने पहुंच जाया करते. बंटू इसे बहुत छोटा काम मानता था और हमें बैरिंगगाड़ी थामे देखते ही अपने घर में घुस जाता. उसे डर लगता था कि कुछ आंयबांय कहकर लफ़त्तू उसकी बेज्जती खराब कर देगा. हां इस कार्यक्रम में हमारे साथ बागड़बिल्ला, गोलू और यदा कदा मौका निकालकर आया फुच्ची भी शामिल हो जाया करते. एकाध बार जगुवा निर्देशक की हैसियत से हमें बैरिंगगाड़ी की तकनीकी जटिलताएं सिखा गया था कि कैसे ज़्यादा स्पीड में गाड़ी के आते ही फट्टों से बने प्लेटफ़ॉर्म के आगे लगे एक छेद से छोटी से लकड़ी को सड़क पर छुआ देने से रफ़्तार कम की जा सकती है.
एक बार मैं गाड़ी थामे अस्पताल की चढ़ाई चढ़ रहा था और लफ़त्तू घासमंडी पर अभी अभी मौज काट कर मेरा इन्तज़ार कर रहा था. उसे कुछ आइडिया सूझा और उसने भागकर मेरे पीछे आकर कहा "नीचे लक दे गाली" मेरे कुछ समझने से पहले उसने मेरे हाथ से छीन कर गाड़ी ज़मीन पर रखी और मुझे उस पर बैठ जाने का आदेश दिया. मैं कुछ सकुचाता सा उस पर बैठा ही था कि उसने मुझे बमय गाड़ी के आगे को ठेलना शुरू किया. उस पर मैमूद वाली मौज छा गई और उसने मुझे धकेलने के साथ साथ कहना शुरू किया "दे दे, दे दे भगबान के नाम पे दे दे. इन्तलनेछनल फकील आए एं ... तुदको लक्के लाम तुदको अल्ल लक्के ... अल्ला लक्के ... अल्ला लक्के ..." आसपास चल रहे लोगों में से कुछ ने अजीब सी दिलचस्पी से हमारी तरफ़ निगाहें डालीं और कुछ ने "हरामी लौण्डे" कहकर लफ़त्तू का उत्साहवर्धन और मेरा अपमानीकरण किया. जिस गति से मुझे ठेला जा रहा उससे जाहिर था कि मुदित लफ़त्तू नाच रहा था. कुछेक आवारा बच्चे हमारे टोले में शामिल हो गए. अचानक सामने से लफ़त्तू के बड़े भाई के आते ही हमारा कार्यक्रम समाप्त हो गया. कार्यक्रम का अन्त वैसा ही हुआ जैसा पहले होता आया था - लफ़त्तू की ठुकाई, मुझे उसके साथ न रहने की मनहूस सलाह और बैरिंगगाड़ी को उसके मालिक के पास तुरन्त पहुंचाने का फ़रमान.
लुटे-पिटे से हम बैरिंगगाड़ी को थामे भवानीगंज पहुंचे ही थे कि बाजार वाली एक गली से दैने बाले सिरी भगवान कहता हुआ लुच्चे भिखारी नमूदार हुआ. लफ़त्तू को क्या सूझी उसने अपनी जेब से दस-बीस पैसे निकाल कर भिखारी से कहा कि वह उसे ये पैसे जभी देगा जब वह बैरिंगगाड़ी में बैठकर हमारे साथ बम्बाघेर तक चलेगा. भिखारी ने आंखें मिचमिचाकर लफ़त्तू और मुझे पहचानने का प्रयास किया और कुछ देर सोचने के बाद पैसे थाम कर अपनी पोटली समेत गाड़ी में बैठ गया. लफ़त्तू ने भिखारी को ठेलने का प्रयास किया पर बह खासा भारी था सो मुझे भी लगना पड़ा. लफ़त्तू ने उसे सलाहें देना शुरू किया "कित्ते दिन येई कैता रएगा ... तू बोल भौत कलता ए ... ऐता कल मैं तुदे एक नया गाना छुनाता ऊं ... इतको याद कल्लेगा तो भौत पैते मिलेंगे ..." एकदम से अभी अभी हुई सुताई भूलकर उसने ज़ोर ज़ोर से मैमूद-प्रोग्राम स्टार्ट किया "दे दे, दे दे भगबान के नाम पे दे दे. इन्तलनेछनल फकील आए एं ... तुदको लक्के लाम तुदको अल्ल लक्के ... अल्ला लक्के ... अल्ला लक्के ..." भवानीगंज के सारे भड़ई दुकानों से बाहर आकर इस दृश्य को देख कर ठठाकर हंस रहे थे. इस से लफ़त्तू और उत्साहित हुआ और उसकी आवाज़ में और जोश भर गया. अतीक भड़ई हमें पहचान गया और बोला "हरामियो काए तंग कर रए हो बुड्ढे को." लफ़त्तू ने आंख मार कर उस के बड़े होने से डरे बिना कहा "बिदनेत ए थबका अपना अपना बेते ..."
भिखारी सम्भवतः काफ़ी थक और चट चुका था और एक जगह ज़रा सी चढ़ाई आने पर बैरिंगगाड़ी के ठहरते ही अपनी पोटली समेत भाग खड़ा हुआ.
हम जगुवा की गाड़ी लौटा कर वापस घर लौट रहे थे. रास्ते में अतीक भड़ई ने हमें एक मोटी गाली देते हुए चेताया कि वह दुर्गादत्त मास्साब से हमारी शिकायत करेगा कि हम कैसे एक बूढ़े भिखारी को परेशान कर रहे थे. लफ़त्तू ने निर्विकार भाव से जवाब दिया "अपना अपना बिदनेत ए बेते ..."
हाथ आए किसी खज़ाने को मजबूरी में वापस लौटा आने का शोक हमारे बीच पसरा हुआ था. अचानक लफ़त्तू बोला "बेते मौद आई?" "हां यार आई लेकिन तेरा भइया बहुत हरामी है."
"हलामी है थाला मगल गब्बल छे जादा नईं" कहकर उसने जेब से पांच का मुड़ातुड़ा नोट निकाल कर दिखाया. कई दिनों बाद इतनी बड़ी रकम देखी थी तो मुझे गश जैसा आया. "क्या बेचा तूने?" मैंने जानबूझकर बेपरवाह बनने का ड्रामा करते हुए उस से पूछा.
(जल्दी ही आगे की कहानी पेश करता हूं साहेबान. कुछ घरेलू विवशताओं ने हाथ थामा हुआ है. धैर्य धरने के लिए धन्यवाद.)
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27 comments:
बिना पढ़े... सलाम भेज रहा हूँ... आपको पता भी है लपूझन्ना हमारे लिए क्या है ? vv
""बिदनेत ए थबका अपना अपना बेते ..."
लफ़त्तू की जिंदादिले बेनजीर है पांडे साहब,
बहुत इंतज़ार रहता है।
मैं जबसे ब्लॉग जगत से परिचित हुआ हूँ आपकी ये पहली ताजा पोस्ट पढ़ी है. पुरानी सारी पढ़ चुका हूँ. मो सम कौन के संजय जी ने ही दिया था ये लप्पुझंना मेरे हाथ में तभी से पकडे खड़ा था.
वास्तव में आपके सारे लेख शानदार हैं.
शुक्र है एप्लीकेशन मंजूर हुई....हम सोचे बैठे थे अब तो बस डाइरेक्ट उपन्यास ही पढेगे .....ऐसे छोटे छोटे पैमाने बीच में मिलते रहे...तो सरूर तारी रहता है ....
Really superb post... Eagerly waiting for next post... next post jara jaldi dijiyega...
गब्बल छे जादा नईं हो कोई!
इस बार तो बहुत इन्तजार कराया आपने...
शुक्रिया की आपने कुछ लिखा,,बहुत दिनों बाद ही सही.लम्बा इंतज़ार कराया इस बार. हर पोस्ट की तरह ,बहुत ही रोचक...एक बात कहूँ लफत्तू को देखने की बड़ी इच्छा होती है वैसे एक स्पष्ट चित्र तो आपके शब्दों ने उकेर ही दिया है. फिर भी..ये "header " में जो फोटो है उसमे से कोई एक तो नहीं?
आज का दिन सफ़ल हो गया, पता नहीं अगली किस्त कब मिले इसलिये बहुत धीरे धीरे फ़ुरसत से पढा...
अपने चाहने वालों को इतना तडपाना ठीक नहीं.
बेहद लज्जतदार पोस्ट ..... इसका स्वाद कुछ दिनों तक बना रहेगा .... शुक्रिया दादा
sukra hai....dr sahab ki application
manjoor hue.....
""बिदनेत ए थबका अपना अपना बेते ..."
khud gabbar ye diologue sunta to ....
lafatoo ka sambha ban jata....
sadar
लम्बा इंतज़ार कराया इस बार आपने. आज का दिन सफ़ल हो गया.
लफ़त्तू ke चाहने वालों को इतना तडपाना ठीक नहीं,बहुत इंतज़ार रहता है।
ब्लॉग जगत में लफत्तू से मिलना कुछ-२ वैसा है जैसे बॉलीवुड में अमिताभ से ...
बड़े दिनों से इन्तजार था .. इस छोटी से मुलाक़ात करवाने क लिए .... शुक्रिया
Darshan
सुबह सुबह आज के दिन की उपलब्धि रही यह पोस्ट। सुंदर। लेकिन इतनी देर क्यों लगा देते हैं लफत्तू के किस्से सुनाने में।
"दे दे, दे दे भगबान के नाम पे दे दे. इन्तलनेछनल फकील आए एं ... तुदको लक्के लाम तुदको अल्ल लक्के ... अल्ला लक्के ... अल्ला लक्के ..."
पाण्डेय सर,
आज हम जैसों कि झोली भी भर दी.....
आपने धैर्य धरने का बहुत इम्तेहान लिया .... अब श्याद ज्यादा नहीं लेंगे. और अगली पोस्ट जल्दी लिखेंगे.
:)...man prasann ho gaya..aaj maine aapki 2 puraani posts padh ke apne pati ko sunaayin...:)....agli post jaldi lilkiye...:)
आप जनाब तो सब्र का भी इम्तेहान लेते हैं.
kitna intzar karate hai aap panday sahab...mazedaar post ke liye shukriya.....
अरे साहब... चाहें तो कुछ चार्ज लगा लें.. लेकिन जरा जल्दी जल्दी पोस्ट लिखा करिये..। हम इन्टलनेछनल भिखारियों को इतना तड़पा के क्यों पाप ले रहें हैं...।
बहोत अच्छा किस्सा..। बधाई..।
"दे दे, दे दे भगबान के नाम पे अगली पोष्ट दे दे. इन्तलनेछनल फकील आए एं ... तुदको लक्के लाम तुदको अल्ल लक्के ... अल्ला लक्के ... अल्ला लक्के ..."
Waiting for ur next post eagerly...
आपके सारे लेख शानदार हैं|
are aap kahan hain? bhool gaye is blog ko kya..kuch likhiye bhi ab..inteha hogayi intzaar ki ashok ji.
I feel unfortunate to come across your blog so late. Amazing flavor and superb writing style.
Lapoojhanna jaise bas apne ne pados ka koi lagta hai..
will wait for many more posts to come.
I feel unfortunate to come across your blog so late. Amazing flavor and superb writing style.
Lapoojhanna jaise bas apne ne pados ka koi lagta hai..
will wait for many more posts to come.
Aaj ka sunday aapki lapoojhanna pe lagaya Pandeyjee aur kya Sunday bitaya..., kasam se majaa aa gaya. Bachpan ke kitne chitra ubhar aaye aur ye jaan ke aur bhi achchha lagaa ki Uttarakhand ke Ramnagar aur Madhyapradesh ke Kasrawad jaisee jagahon par bachpan ek se hua karte the.
Nice Love Story Added by You Ever. Read Love Stories and प्यार की स्टोरी हिंदी में aur bhi bahut kuch.
Thank You For Sharing.
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