फ़ुच्ची के पापा की रेडीमेड कपड़ों की रेहड़ी एक रोज़ शहर में दिखनी बन्द क्या हुई कि लफ़त्तू अनन्त नोस्टैल्जिया में मुब्तिला हो गया. यह मनहूस बखत बहुत लम्बा खिंचा. मेरे मन में बौने के ठेले पर लिखित दोहे वाली उसकी प्रेमिका की असंख्य तस्वीरें बनती -बिगड़ती रहीं पर किसी भी तरह की लड़की की ठोस सूरत बना पाने में मेरा तसव्वुर नाकामयाब रहा. ये वही दिन थे जब गमलू और कुच्ची नाम्नी दो जुड़वां लड़कियां अपनी चर्चित नफ़ासत के कारण हमारी लौंडसुलभ क़स्बाई फ़ैन्टैसियों की नवनायिकाएं बना ही चाहती थीं.
अचानक किसी चमत्कार की तरह लफ़त्तू अपनी मनहूसियत से उबरा और उसने "झूम बराबर झूम शराबी" की पैरोडी "बाप छे जादा बेता हलामी" बना कर एक रोज़ क्रिकेट छत पर पेश की.
गोबर डाक्टर की ये बेटियां जब इकठ्ठे सुतली चोट्टे के नाम से मशहूर एक बूढ़े चाटवाले के ठेले पर से पानी के बताशे पैक करवा के ले जाती थीं तो वहां अपने पेट में चाट ठूंसती मुटल्ली स्त्रियों के पत्तल शर्माने लगते थे. ये दो लड़कियां उन से यह कहती नज़र आती थीं कि देखो भले सम्भ्रान्त घरों के लोग सब कुछ घर के भीतर करते हैं - चाहे वह पानी के बताशे खाने जैसा आमफ़हम और परम सार्वजनिक कृत्य के तौर पर स्वीकार कर लिया गया कर्म ही क्यों न हो.
सुतली चोट्टे का ठेला हमारे घर के बग़ल में रहने वाले हरिया हकले के साइड वाले छज्जे से लगता था. हर शाम. उसके पास एक पैट्रोमैक्स था और उसके यहां हर चीज़ बाज़ार से महंगी होती. हरिया हकले को फ़कत हकला कहना उसकी अन्य प्रतिभाओं का अपमान था. रामनगर के हमारे खताड़ी मोहल्ले में पानी बस शाम को आया करता था और तथाकथित बाथरूमों में सजे डामर के तीन-चार ड्रमों को इसी वक़्त भरा जाना होता था. पानी आते ही उस पर किसी जलडमरूमध्य में भटक रहे किसी पुरातन प्रेत की आत्मा एक्टिवेट हो जाती और वह जितने पड़ोसी घरॊं में सम्भव हो " ... मानी! ... मानी! ... मानी! ..." कहता पानी के आने की सूचना दे आता. हिन्दुस्तान के परिचित घरों में सूचित कर चुकने के बाद उसे " ... मानी! ... मानी! ... मानी! ..." कहते हुए पाकिस्तान निवासी जब्बार कबाड़ी की तरफ़ भागते उड़ते तैरते देखा जाता था.
पानी जाने वाला होता था जब सुतली चोट्टे के ठेले पर बहार आई होती थी. अपने घरों में ड्रमभरीकरण कर चुकने के बाद भरसक प्रेज़ेन्टेबल बन आई मुटल्ली स्त्रियां टिक्की, दही भल्ले, कचरी और पानी के बताशों पर हाथ साफ़ करने में तल्लीन रहा करती थीं जब हरिया हकला अपना पूरा ध्यान पानी की टोंटी से लगाए रखता और उसके सूंसूं करते ही तनिक भावपूर्ण उल्लास में कहा करता: "... मानी, मानी ... श्या..."
इधर गोबर डाक्टर की बेटियों को सुतली के बताशों की और हमें उन्हें ताड़ने की नैसर्गिक लत लग गई थी. हरिया हकला हमारे इस काम में एक अकल्पनीय बाधा बन कर आया. अक्सर जब वह "... मानी, मानी ... श्या..." कह रहा होता था कुच्चू-गमलू भी वहीं होते थे और वे दोनों स्कर्टधारी बच्चियां हरिया को देखकर यूं मुस्करातीं जैसे उन्हें ऐसी गुदगुदी कभी महसूस न हुई हो. हरिया सुतली से बच्चियों के घर ले जाया जाने वाला माल ले लेता और उनके घर की तरफ़ रवाना हो जाता. वह हाथों से इशारा भी करता जाता कि वे फ़िक्र न करें. हरिया हकला केवल तीन शब्द बोल पाता था जिन्हें ऊपर लिखा जा चुका है. इसके अलावा सारा संवाद वह अपने हाथों से किया करता.
मैं, लफ़त्तू, बन्टू और सत्तू ऊपर हरिया की छत से ताकीकरण में लगे रहते थे. उधर हकला गमलू-कुच्चू को "... मानी, मानी ... श्या..." कह कर रिझाया करता. करीब माह भर तक ऐसा चलता रहा. आख़िरकार एक दिन लफ़त्तू के सब्र का बांध टूट ही गया. एक वयस्क तोतली गाली दे कर उसने बहुत डिसाइसिव होकर कहा : " ये थाले हकले ने फांत लिया तुम थब की भाभी को!"
वाया फ़ुच्ची कप्तान भाभी-ज्ञान से मैं तो परिचित था पर बन्टू और सत्तू की समझ में कुछ ज़्यादा नहीं आया. बन्टू और सत्तू को वहीं छोड़ कर लफ़त्तू मुझे तकरीबन घसीटता हुआ बाहर सड़क पर ले गया. हरिया हकले द्वारा उन दो माडर्न लड़कियों में से एक को फंसा लिए जाने की लफ़त्तू की बात दो वजूहात से मेरे लिए जीवन का सबसे बड़ा सदमा थी. पहला तो यह कि कोई हकला किसी लड़की को क्या कहकर फंसा सकता है - पिक्चरों में तो सारे हीरो इसी काम में इन्टरवल तक का मामला निबटा दिया करते थे. दूसरा यह कि लफ़त्तू भी ... उफ़! यानी बाहर से इस कदर बदमाश दिखने वाला लफ़त्तू भी ...!
"यार लफ़त्तू, तेरा दिल तो मोम का है!" मैंने अभी अभी देखी गई किसी पिक्चर का आधा अधूरा वाक्यांश बोलने की कोशिश की.
"मोम का ऐ तो मोमबत्ती बनाऊं थाले की!" उसने किशमिश जैसा मुंह बनाया और बहुत ज़्यादा वयस्क गाली बकते हुए सड़क पर थूका. "हकले थे फंत गई कुत्तू!"
मेरा मन दहाड़ें मार कर रोने को हो रहा रहा था क्योंकि मैं ख़ुद उन में से पता नहीं किसी एक की मोहब्बत में गिरफ़्तार था. मोहब्बत तो मधुबाला से भी थी और सकीना से भी मगर उन स्कर्टधारिणियों का आसिक बनने का ख़्वाब इधर कुछ दिनों से विकल किये हुए था. तकलीफ़ ये थी कि वे दोनों बहुत ज़्यादा जुड़वां थीं. हमेशा एक से कपड़े पहनतीं एक से बस्ते लेकर स्कूल जातीं और उनकी आवाज़ भी एक सी लगती थी जब वे अपने मां बाप को "मम्मा ... पापू ..." कह कर पुकारा करतीं ...
(जारी ...)
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15 comments:
Very very interesting, as usual
बहुत ज्यादा जुड़वां-हा हा!! पहली बार जीवन में सुना..जारी रखो..आनन्द आ गया.
ड्रमभरीकरण? हा हा हा... मैं अपने घर में भी ड्रमभरीकरण याद कर रहा हूँ और गमलू और कुच्ची की तरह अपने मोहल्ले की अत्यन्त sofisticated दो बहनों हनी (दूसरी का नाम याद नहीं) को याद कर रहा हूँ.
यह एक बड़ा और महत्वपूर्ण/कहत्वपूर्ण कथात्मक प्रयास है, जिसे बिना किसी दिखावे के बहुत सहजता से किया जा रहा है। एक क़स्बे की बनावट और आत्मा को समझने के दावे तो नई कहानी के दौर से होते आ रहे हैं पर मेरी जानकारी के अनुसार ऐसी सफलता मुझे तो और कहीं नहीं दिखी। बधाई दद्दा!
बहुत देर से दर पे आँखें लगी थीं, हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी। अशोक जी दो महीनों से ज्यादा का इंतजार करवाया आपने, लेकिन मजा आ गया। अब ज्यादा देर न करिए और जारी... को जल्दी पूरा कर दीजिएगा। आज की सुबह को खुशनुमा बनाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।
bahut hi accha likhte ho bhai jee. jari rakho. man karta hai ki padhte hee jayen...
फणीश्वर नाथ रेनू जैसा टच है....या खालिस सा कुछ ...पर लिखा ऐसा है की ....दिलचस्पी बढती चली जाती है
Dhanyawad......2 mahine ke antaraal ke baad akhir apney ek dhansu episode likh hi dalaa. itna intejaar to mainey bachpan mein nagraaj/dhruv ki comics ka nahin kiyaa.
Har baar ki tarah shandar aur jandar....
लपूझन्ना को, आपको, आपके परिवार एवं मित्रों को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई!
Sir Ji...
waiting for new post. Laffatu ji ko mera pranam... :)
very interesting as usual... keep writing..
which application are u using for typing in Hindi...? was searching for user friendly Hindi typing tool and found 'quillpad'.do u use the same...?
परमप्रिय श्री लप्पूझन्ना जी,
पिछले कई दिनों से आपके ब्लॉग पर कोई नई पोस्ट ढूंढ रहा हूं पर लगता है आपके सारे ऐंचकताने पात्र पहले तो गणतंत्र दिवस मनाते रहे और अब अंग्रेजी के अन्य उत्सव मनाने निकल गए हैं। उन्हें ढूंढ कर लाइए। उनके हकलेपन और आपके इश्कबाजी के किस्से की दास्तान अब आगे बढनी चाहिए।
Lappu Rules ! Matchless description of an era gone by. Daamar ke drum & all that pre-plastic age saga engulfs the reader in a cosy aagosh.
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