Thursday, February 28, 2008

नौ फ़ुट की खाट और आश्टेलिया के राष्ट्रपति का आगमन

रामनगर से बहुत ज़्यादा दूर नहीं था जिम कॉर्बेट पार्क। बड़े लोगों की आमद वहां जब तब होती रहा करती थी। बड़े लोगों के आने का मतलब यह होता था कि हम सारे बच्चे कालेज से चार पांच इमारत दूर मौजूद पोस्ट आफ़िस से लेकर मक्खनलाल छज्जूमल के पम्प तक हाथों में झंडा या पट्टियां थामे कुछ गाड़ियों के काफ़िले का इन्तज़ार करते रहते थे। प्रतीक्षा के उन पलों में प्यास बहुत लगा करती थी।

खैर!

अचानक चन्दर मास्साब का इशारा होता था और सारे बच्चे "आपका सुवागत है सिरिमान" गाना चालू कर देते थे। पोस्टआफ़िस से पम्प तक की दूरी अच्छी खासी थी और गाने के अलग अलग बोल एक बेसुरे कोरस की शक्ल में हवा में धूल की तरह तैरा करते थे। हम लोग बेहद उत्साह में गाते हुए हाथों में झंडा या पट्टी जो भी होता था, को जल्दी जल्दी हिलाना भी जारी रखते थे। अचानक एक या दो गाड़ियां धारीवाल मास्साब के घर के पास रुका करती थीं। प्रिंसिपल साब बदहवास भागते हुए उन गाड़ियों की तरफ़ जाया करते थे। गाड़ियों का शीशा कभी खुलता था कभी नहीं। इस के पहले कि हम कुछ समझ पाते गाड़ियों का कारवां हॉर्न-साइरन इत्यादि बजाता आंखों से ओझल हो जाया करता था। इस पूरे आयोजन में बमुश्किल दो या तीन मिनट लगा करते थे। कभी कभी हम इस पूरे कार्यक्रम के लिए सुबह स्कूल खुलने से लेकर दोपहर तक बिना खाए-पिये सड़क पर कतार बांधे मक्खियां मारा करते थे। कतार तोड़ने की सूरत में दुर्गादत्त मास्साब और तिवारी मास्साब के डण्डे हमारे शरीरों पर गिरने को सदैव तत्पर रहते थे।

इन आयोजनों के तीन मज़े होते थे। एक तो दिन भर पढ़ाई नहीं होती थी । दूसरे गाड़ियों के गुज़र जाने के बाद समोसा और लड्डू मिला करते थे। तीसरा और सबसे बढ़िया काम यह होता था कि अगले दिन छुट्टी हुआ करती थी।

कुछ दिनों से चर्चा में था कि आश्टेलिया के राष्ट्रपति का जिम कॉर्बेट पार्क आने का कार्यक्रम है। आश्टेलिया के बारे में हमारा ज्ञान बस रेडियो पर कमेन्ट्री तक सीमित था। हमने चैपल भाइयों के नाम सुन रखे थे और लिली-थामसन के भी। ये नाम इतने ज़्यादा सुने हुए थे कि हमारे मोहल्ले में सबसे फ़ास्ट बॉलिंग करने वाले नवीन जोशी को थॉमसन के नाम से ही पुकारा जाता था। वैसे सबसे ज़्यादा पॉपुलर वेस्ट इंडीज़ के खिलाड़ियों के नाम थे। रेडियो की कमेन्ट्री बताती थी कि अपने बेदी-चन्द्र्शेखर-प्रसन्ना और वेंकटराघवन लगातार धुने चले जाते थे और ग्रीनिज, फ़्रेडरिक्स, लॉयड, रिचर्ड्स और कालीचरण वगैरह हज़ारों रनों का अम्बार लगाए चले जाते थे। बस गावस्कर और विश्वनाथ से हमें लगाव था क्योंकि ये दोनों छोटू भारत की किरकिट पर फ़खर करने के दुर्लभ मौके मुहय्या कराया करते थे। एकाध बार तो हद्द हो गई थी जब गावस्कर ने एक मैच में बॉलिंग की शुरुआत की। मेरा बड़ा भाई बहुत गुस्से में फ़ुंफ़कारता हिन्दुस्तानियों को गाली देता रहा था उस दिन।
ख़ैर, क्रिकेट पर विस्तार से बाद में। चैपल और लिली-थॉमसन के देश के राष्ट्रपति का रामनगर-आगमन मेरे और मेरे हमउमर बच्चों के लिए तब तक की सबसे महान और एतिहासिक घटना थी। जैसी कि शहर कि फ़ितरत थी अफ़वाहों से आसमान पट गया। किसी ने कहा कि आश्टेलिया के राष्ट्रपति को इन्द्रा गांधी ने बुलाया है खा़स सैरसपाटे के वास्ते। किसी ने कहा कि आश्टेलिया के राष्ट्रपति का जीनत अमान से चक्कर चल रहा है। इस दूसरी अफ़वाह को इस तर्क द्वारा तुरन्त ख़ारिज़ किया गया कि जीनत अमान को अंग्रेज़ों जितनी तेज़ अंग्रेज़ी बोलनी आ ही नहीं सकती। लिली-थॉमसन और चैपल-गावस्कर को ले कर भी तमाम बातें कही गईं।

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण अफ़वाह आश्टेलिया के राष्ट्रपति के क़द को लेकर फैली। यह बात जगजाहिर थी की अंग्रेज़ बहुत ज़्यादा लम्बे होते हैं। क़द को लेकर अफ़वाह फ़ैलाए जाने की ज़रूरत इस अफ़वाह के बाद पड़ी कि आश्टेलिया के राष्ट्रपति ने एक रात जंगलात के रामनगर स्थित डाकबंगले में रुकना है।

जब्बार कबाड़ी का मानना था कि ये बेसिरपैर की बातें उसका पड़ोसी और भवानीगंज में बढ़ईगीरी करने वाला अतीक फैला रहा था। फ़िलहाल पहले ये कहा गया कि मैल्कम फ़्रेज़र (सत्यबली मास्साब हमें आश्टेलिया के राष्ट्रपति का नाम रटा चुके थे तब तक) के रहने लायक सिर्फ़ एक कमरा डाकबंगले में ठीकठाक पाया गया है। एक ज़माने में हैनरी रैमज़े साहब (ब्रिटिश कालीन कुमाऊं के इस विख्यात विद्वान कमिश्नर को तब भी रामजी साब कहा जाता था) जिस खाट पर सोया करते थे, वही खाट मैल्कम फ़्रेज़र के सोने हेतु दुरुस्त कराई जा रही थी। जब्बार कबाड़ी का कहना था कि ऐसी कोई खाट फ़िलहाल डाकबंगले में नहीं बची है। कई साल पहले हुई सरकारी नीलामी में वह डाकबंगले का कोना कोना देख चुका था।

मैल्कम फ़्रेज़र का क़द लगातार बढ़ता जा रहा था। साढ़े छः फ़ुट से शुरू होकर अब वह सवा सात तक पहुंच चुका था। हम बच्चों में भी यदाकदा इस मुद्दे पर चिन्ताग्रस्त वार्तालाप हुआ करते थे। मसलन इतनी बड़ी खाट आएगी कहां से। सारे रामनगर में इतना लम्बा कोई न था। पुराने ज़माने के रायबहादुर साहब भी साढ़े छः फ़ुट के ही थे। मान लिया वे अपनी खाट एक रात को उधार पर देने को तैय्यार हो भी गए तो मैल्कम फ़्रेज़र को कितना बुरा लगेगा - एक तो अंग्रेज़, दूसरे राष्ट्रपति तीसरे खाट भी छोटी।

"इन्द्रा गांधी बलबाद हो जाएगी बेते" - अपने ब्रह्मवाक्यों से हमें आतंकित करने की अपनी पुरानी आदत से परेशान लफ़त्तू ने इस परिदृश्य पर यह महान टिप्पणी की।

होते होते मैल्कम फ़्रेज़र का क़द नौ फ़ुट तक पहुंच गया। खाट की बात अब पुरानी हो गई थी क्योंकि रामनगर के बढ़ई इस औकात के नहीं पाए गए कि आश्टेलिया के राष्ट्रपति के लिए वैसी खाट बना सकें। जब्बार कबाड़ी के हवाले से इस ऐतिहासिक तथ्य पर मोहर लग गई कि मैलकम फ़्रेज़र की खाट आश्टेलिया से ही आने वाली है और भारत की वायु सेना का खास जहाज़ उसे रामनगर लाने वाला है।

स्कूल में हमारी हफ़्ते भर की छुट्टी हो गई। हम सब को फ़्रेज़र साब के आने के दिन खेल मैदान से दूर रहने की कड़ी हिदायत दे दी गई थी। सत्यबली मास्साब ने छुट्टी घोषित करने से पहले "प्यारे बच्चों, विदेशी मेहमानों की इज़्ज़त करने की हमारी पुरानी परम्परा रही है ..." टाइप का एक उबाऊ भाषण दिया।

आश्टेलिया के राष्ट्रपति के आगमन वाले दिन खेल मैदान पर जाने की किसी को इजाज़त नहीं थी। हमारे घर की छत से साफ़ नज़र आ रहा था कि सारे मैदान पर खाकी वर्दीधारी पुलिस वालों की भीड़ थी। हमारी छत की लोकेशन बहुत महत्वपूर्ण थी इसलिए वहां करीब सौ लोग जमा थे। मैदान की तरफ़ जितने भी मकान थे, उन सब की छतें लोगों से अटी पड़ी थीं।

हमारी छत पर एक और आकर्षण भी था। डिग्री कालेज में अंग्रेज़ी पढ़ाने वाली मैडम का भाई नैनीताल से आया था। उस के रंगीन और फ़ैशनेबल काट के कपड़े हमें हमेशा तुच्छ बोध से भर दिया करते थे। वह साल में दो दफ़ा रामनगर आया करता था और हमारे लिए नैनीताल को किसी तिलिस्मी जगह की तरह स्थापित कर जाता था। हमें पता था कि रामनगर के गंवाड़ी समाज में लाल बैलबॉटम पहनने वाला मैडम का भाई हमें कुत्तों से भी बदतर समझता था, इस लिए हमारे दिल में उस के लिए बहुत इज़्ज़त थी। ख़ैर असल बात यह थी कि मैल्कम फ़्रेज़र के आगमन वाले दिन वह भी रामनगर में था और सुबह से ही एक विशेष जगह पर काबिज़ था। उसके पास एक महंगी सी लगने वाली दूरबीन भी थी। शीघ्र पहुंचने वाले आश्टेलिया के राष्ट्रपति के हौलीकैप्टर को देखने का आकर्षण तो था ही, मैडम के भाई की दूरबीन को देखकर भी लार गिर रही थी। एक बार उस ने मुझे अपने पास बुलाकर मेरी आंखों पर दूरबीन लगाई भी। मुझे कुछ चेहरे बहुत नज़दीक नज़दीक देखने की स्मृति भर है। करीब पांच सेकेंड ही मुझे यह लुफ़्त मिल सका।

अचानक आसमान पर हौलीकैप्टर के घरघराने की आवाज़ आई। आवाज़ नज़दीक आती जा रही थी और हमारी छत पर उत्तेजना का माहौल फ़ैलता जा रहा था। क़द में बहुत छोटा होने के कारण मुझे कहीं कुछ नज़र नहीं आ रहा था। मेरे आगे - पीछे लोगों की टांगें थीं और मुझे कुचले जाने का भय हुआ।

घरघर की आवाज़ बढ़ती गई फ़िर अचानक मैंने देखा कि आसमान पर धूल का विशाल गुबार उठना चालू हुआ। हौलीकैप्टर के उतरने से मैदान की मिट्टी उड़ रही थी और लोगों की चीखों-चिल्लाहटों से जाहिर हो रहा था कि उन्हें कुछ नज़र नहीं आ रहा था। घरघर की आवाज़ फिर आने लगी और दूर जाती लगी।

मेरी निगाह अचानक आसमान की तरफ़ उठी। हौलीकैप्टर जिस दिशा से आया था उसी तरफ़ लौट रहा था। मेरे चारों तरफ़ की अफ़रातफ़री और बढ़ गई थी। धूल का गुबार कुछ देर को घना होने के बाद छंटने लगा था। हवा साफ़ हुई तो लोगों के मुंहों से अजीब सी कराह निकली मानो आशियां लुट गया हो। "धत्तेरे की!" कहता हुआ मैडम का भाई मुंडेर से नीचे उतर आया और अब दूरबीन भी उसके हाथ से जेब के भीतर घुस चुकी थी।

"क्या हुआ?" मैडम उस से पूछ रही थीं। वे उस से इस लिए पूछ रही थीं कि उसके पास दूरबीन थी।

"होना क्या था! साला आया और जहाज़ से उतर के सीधे गाड़ी में बैठ के निकल गया।"

मां रसोई की तरफ़ जाने लगी। लफ़त्तू नीचे सड़क से मुझे इशारा कर के बुला रहा था। मेरी बड़ी इच्छा थी कि मैडम के भाई से कम से कम आश्टेलिया के राष्ट्रपति के क़द के बाबत पूछ कर देखूं।

लेकिन वह नैनीताल से आया था और मैं अपने आप को उस के सामने हर्गिज़ छोटा क़स्बाई लौंडा साबित नहीं करना चाहता था।

13 comments:

ghughutibasuti said...

बहुत अधिक मजेदार किस्सा रहा ।
घुघूती बासूती

मनीषा पांडे said...

फिर क्‍या हुआ। कद के बाबत कुछ रहस्‍य खुला या नहीं। और उस पलंग का क्‍या हुआ, जो ऑस्‍ट्रेलिया से आने वाली थी। बहुत मजेदार रहा नौ फुट की खाट और ऑस्‍ट्रेलिया का किस्‍सा।

चंद्रभूषण said...

इस राष्ट्रपति की तो ऐसी की तैसी। अपना लपूझन्ना जिंदाबाद!

आभा said...

मजा आया ..दिनभर मजा लङ्ङू समोसा अगले दिन छुट्टी, फिर बचपन को क्या चाहिए..कोई आए या न आए

Sanjeet Tripathi said...

मस्त किस्सा!!
बढ़िया लगा॰॰

अनामदास said...

मज़ेदार किस्सा है, और लिखिए.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आज आपका " किस्सा -ऐ - ओस्तेलीया " पढ़कर बहुत हंसी आयी ..लिखते रहें ..ऐसे ही मजेदार किस्से !

काकेश said...

भल लागौ ..मज अ गो हो दाज्यू...

siddheshwar singh said...

खूब नीमन लागल ए बबुआ

अभिनव said...

वाह...

शेफाली पाण्डे said...

थोमसन नहीं जानता है की उसे इस नाम से पुकारा जाता है ....वैसे मैंने बता दिया है उसे .....

शेफाली पाण्डे said...

थोमसन नहीं जानता है की उसे इस नाम से पुकारा जाता है ....वैसे मैंने बता दिया है उसे .....

EcoFriendly said...

behatareen, rochak aap kitab likho,,,